कविताएँ
लगा कि मैं प्रेम में डूबा पड़ा हूँ / किसी राग की तरह / जो ठुमरी में उलझा है
बिना आलाप के और / उसे वहाँ से निकलना ही नहीं है।
तुममें रहकर मैं / तुम्हें लिख नहीं पाता / और तुममें रहे बिना / कुछ लिखना बेमानी है
कुछ पन्ने हैं जो लिखे-फाड़े / पुनः जोड़े, फिर से लिखे और / फिर-फिर फाड़ दिए /तुम्हें लिखने में।
हर बार बदल गए शब्द, राग / बदल गई ताल / प्रेम की हमराह होने में।
कोई शब्द ऐसे नहीं बचे / जिन्हें काट-काट कर / फिर से नहीं लिखा।
अब सारे शब्द कटे पड़े हैं।
सुबह
मटके में ठंडा पानी चलाती
जब तुम्हारी चूड़ियाँ खनकती हैं माँ,
मैं सुनता हूँ
जल तरंग पर राग भैरवी,
माँ तब होती है सुबह।
प्रार्थना
श्रेष्ठतम प्रार्थना
लिखने के लिए
तमाम शब्द चुने
ज़िन्दगी भर मैंने
और लिखा 'माँ'।
चाँदनी रात में
तुम जो बनती मौसम चाँदनी रात में।
ज्वार उठते हैं मुझमें चाँदनी रात में।
साँस के बहाने कलियाँ भरती हैं गंध
जब तुम गुजरती चाँदनी रात में।
दिल में लौ, धड़कन में लय, तेरा बोलना
हर शब्द महाकाव्य, चाँदनी रात में।
मेरी दोस्त ये साथ, चिर प्यार निर्मल
ज्यों बहती नदी चाँदनी रात में।
क्या करेंगे उम्र चार दिन की ले?
एक उम्र ही बहुत चाँदनी रात में।
उस समय से
उस समय से इस समय तक
बस गडरिए ही चले
गर्दन झुका भेड़ें जुड़ती रहीं।
करोड़ों भेड़ें लील गया महाभारत
कलिंग में बहीं खून की नदियाँ
धुँआ हो गया हिरोशिमा
वियतनाम, ईरान से सीरिया तक
आदमी ही कटा, गडरिए चलते रहे
उस समय से इस समय तक।
नहीं दिखी किसी को बंजर होती धरती
बिवाइयाँ फट पड़ीं उसकी छाती पर
दाने को तरसतीं
दर-दर भटकतीं
अंगूठे लगातीं भेड़ें
नहीं देख पाईं राजमार्ग की सड़क
उस समय से इस समय तक।
कोख में घुटे शिशु, माँ की लाश के साथ
भागते बच्चे, युवतियाँ और मर्द
नहीं लांघ पाए नक्शों की लकीरें
बस चश्मदीद रहीं भेड़ें
उस समय से इस समय तक।
बहुत बढ़ी दुनिया अख़बार में
चाँद, मंगल, ब्रह्माण्ड और परे
ज़हर होती हवा, फैलाती रही दमा, तपेदिक
ख़ाँसती रही बुढ़िया, तपता रहा बूढ़ा
लाचार, दवा के लिए तरसती भेड़ें
हाँकते रहे गडरिए
उस समय से इस समय तक।